Thursday, June 23, 2016

इक अरसा हुआ सोच के

इक अरसा हुआ
सोच के इश्क़ के बारे में
छुपा के रखते थे कुछ यादें
जब अलमारी के किनारे में

पुराने उसी bag में
तुम्हारा इक लौता प्रेम पत्र
पढ़ते ही छा जातीं हैं आज भी
खुशियाँ सर्वत्र

वो दिन भी क्या दिन थे
मोहब्बत होती थी इशारे में

इक अरसा हुआ
सोच के इश्क़ के बारे में
छुपा के रखते थे कुछ यादें
जब अलमारी के किनारे में

हर अक्षर में रमा हुआ
पहले प्यार का अहसास
हर पंक्ति में लिखी हुई
हर बात बड़ी ही ख़ास

कभी भी क्यों दिखी नहीं
मुझे कोई कमी तुम्हारे में

इक अरसा हुआ
सोच के इश्क़ के बारे में
छुपा के रखते थे कुछ यादें
जब अलमारी के किनारे में

अपनी उन सारी बातों को
काश तुम ख़तों में लिख सकती
इतने सारे ख़त होते
सबमें अलग-अलग मुझे दिख सकती

तो बाकी की ज़िन्दगी भी कट जाती
उन सबके सहारे में

इक अरसा हुआ
सोच के इश्क़ के बारे में
छुपा के रखते थे कुछ यादें
जब अलमारी के किनारे में

-जितेश 'कविराज' मेहता