Wednesday, April 24, 2013

Over a cup of coffee

over a cup of coffee

कब से ढूंढ रहा हूँ मौका

माँगनी इक माफ़ी है 
पर ये शायद होना possible
over a cup of coffee है 

phone पे तुम जवाब न देती 

ये कैसी न इंसाफी है 
मिल के बात होना possible 
over a cup of coffee है 

तुझे खिलानी मैंने

अपने प्यार भरी इक toffee है 
वो भी लेकिन possible 
over a cup of coffee है 

इक बार ही मिल लो 

इक पल को वो मेरे लिए बस काफी है 
बाकी जो होगा होना वो 

over a cup of coffee है 



-Jitesh मेहता 




Saturday, April 13, 2013

नदी की व्यथा कथा

नदी की व्यथा कथा 


फैंको फैंको और ज़रा सा मैला गन्दा पानी
खूब सुनाना फिर दुनिया को मेरी मरी कहानी 

कब से तरस रही हूँ मैं इक साँस साफ़ ले पाऊं 
शहर बदले गावं भी बदले और कहाँ अब जाऊं 

मेरा मैला अंग देख क्यूँ रोती नहीं हैं आँखें 
मुझको पीके गन्दा करते तुम इंसान कहाँ के  

साबरमती के संत थे तब मेरी होती थी पूजा 
अब पूजा सामग्री डाल मुझको कर डाला दूजा 

विश्वामित्र ने बैठ किनारे मुझे था शुद्ध कर डाला 
तुमने आज बनाया उस विश्वामित्री को नाला 

अजी पे डाला कूड़ा कंकर मैली कर दी तापी 
रुक जाओ अब संभल भी आओ और बनो न पापी 

रुक जाओ अब संभल भी आओ और बनो न पापी 
रुक जाओ अब संभल भी आओ और बनो न पापी 

-जितेश मेहता