Saturday, September 10, 2011

सवाल है

सवाल है

ये कौन हैवान बना
मचा रहा कोहराम है
क्या उसका कोई घर नहीं
नहीं क्या कोई काम है
क्यूँ सब तरफ मासूमों
का वो करे बुरा हाल है
ये मेरा इक सवाल है

क्यूँ सोचता नहीं है वो
के जनम एक बार है
क्यूँ दुश्मनी में तत्पर
सबको मारने को तैयार है
मचा रहा सभी जगह
क्यूँ तेज़ इक बवाल है
ये मेरा इक सवाल है

कहीं पे बमों से
कहीं पे गोलियों की बोछार से
मिटा रहा है वो
प्यार को सत्कार को औज़ार से
है सहमी सृष्टि जाने
क्यूँ आया इक भूचाल है
ये मेरा इक सवाल है

पहले कभी सुनाई देता
था ना किस्सा ये इस देश में
अब घूमता रहता  
हर जगह दरिंदा कई भेस में
और मचाया उसने क्यूँ
आतंक हर साल है
ये मेरा इक सवाल है

- जितेश मेहता

Sunday, August 21, 2011

वाह क्या मौसम बारिश का

This peom describes what happens when it rains
enjoy reading the poem

वाह क्या मौसम बारिश का  

वाह क्या मौसम बारिश का  
ये चाय की चुस्कियां  
ठंडक भरा ये मौसम  
बचपन की मस्तियाँ 
फिर से चलाने को मन  
करे कश्तियाँ  
सब एक सी दिखें  
खुश सारी हस्तियाँ 

वाह क्या मौसम बारिश का  
ये चाय की चुस्कियां  
ठंडक भरा ये मौसम  
बचपन की मस्तियाँ 
कहीं पे पानी से भरे गड्ढे
कहीं पे हरियाली 
ये धुले नहाये से पेड़ पत्ते
जैसे पूरी दुनिया ही नहाली 

गलियों में महल्लों में 
पकोड़ों की महकती खुशबू 
सब तरफ चहल पहल
किसीने कर दिया जादू 
जो थका सा सूखा सा 
वो तृप्त अब जहाँ  
वाह क्या मौसम बारिश का  
ये चाय की चुस्कियां  
ठंडक भरा ये मौसम  
बचपन की मस्तियाँ 

ये चिड़ियों का ख़ुशी में 
झुण्ड बन के चेह्चाहना
ये गाये भैसों का  
सड़क बीच  नहाना 
अब सब जल मग्न
हो चुका और चाहिए कुछ कहाँ  
वाह क्या मौसम बारिश का  
ये चाय की चुस्कियां  
ठंडक भरा ये मौसम  
बचपन की मस्तियाँ 

-जितेश मेहता

Sunday, August 7, 2011

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी

this poem takes you through the various stages of life of a common man
and tells that each one of us need to take out time for some fun in life. fun here is termed as "अईयाशी"



ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी,

अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी,


पहले शादी फिर बच्चे ख्च्चे

चर्चे खर्चे बिजली पानी बीमा के पर्चे

फिर छाने लगती है धीरे से उदासी सी,

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी,

अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी,



पहले नौकरी फिर तराकी

ज़िमेदार्रियाँ वो भी पक्की,

दिनचर्या हो जाती है जैसे किसी खलासी सी,

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी,

अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी,



पहले घूमना फिरना त्यौहार रिश्तेदार अटखेलियाँ

फिर सारी लगने लगती है पहेलियाँ,

माला भी लगती है फंसी सी,

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी,

अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी,



-जितेश मेहता

Point of View : on Youth intend to get married

This poem is dedicated to Devika my saaliji and all others in the same age group who intend to get married soon but would never accept the fact in open. I guess its in or could be a strategy by all young chaps in the age group to make sure their parents, relative and friends would work harder to get them married. Wo kehta hai na "Once you make a decision, the universe conspires to make it happen " (universe here is parents, friends and relatives).

regards,

Jitesh

enjoy the poem

शादी का लड्डू फूट
रहा है मन में
अब चाहिए तुम्हे
कोई साथी जीवन में

अकेले रह कर पूरा किया
एक अद्याय जीवन की कहानी का 
अब समय गया है
लूट लो  मज़ा इस जवानी का 
अब  खिलेंगे नई किस्म
नए रंग के फूल इस मौसम में

शादी का लड्डू अब फूट
रहा है मन में
अब चाहिए तुम्हे
कोई साथी जीवन में

अब बेटा बाप के बेटी माँ
के कन्धों  से ऊँची हो गयी है
बचपन की मासूमियत
जवानी में खो गयी है
अब कुछ अलग चाह उठती है
जब देखो दर्पण में

शादी का लड्डू अब फूट
रहा है मन में
अब चाहिए तुम्हे
कोई साथी जीवन में

ये लड्डू खाओ तो पछताओ
ना खाओ तो पछताओ पता है
पर फिर भी मन है
के करनी ये खता है
कुछ पाने का मज़ा तभी है
जब कुछ खोता है समर्पण में

शादी का लड्डू अब फूट
रहा है मन में
अब चाहिए तुम्हे
कोई साथी जीवन में

- जितेश मेहता