आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।
ठंडी पवन का इक झोंका
जब बालों से होके गुज़रा,
तेरी नर्म नर्म उँगलियों का
अहसास दिला रहा है ।
आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।
पलकों के झपकते ही
इक आंसूं निकल टपका है,
उस आंसूं की बूँद में
तेरी आँखें दिखा रहा है ।
आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।
चिड़ियों का शाम होते ही
जब झुण्ड चेह्चाहाये,
तेरी वो खिलखिलाती
हसीं सुना रहा है ।
आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।
है सामने लगा इक
बरसों पुराना शीशा,
मैं हूँ अकेला तुझ बिन
मुझको बता रहा है ।
आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।
-जितेश मेहता