Wednesday, May 23, 2012

आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को

आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।

ठंडी पवन का इक झोंका 
जब बालों से होके गुज़रा,
तेरी नर्म नर्म उँगलियों का 
अहसास दिला रहा है ।

आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।

पलकों के झपकते ही 
इक आंसूं निकल टपका है,
उस आंसूं की बूँद में 
तेरी आँखें दिखा रहा है ।

आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।

चिड़ियों का शाम होते ही
जब झुण्ड चेह्चाहाये,
तेरी वो खिलखिलाती 
हसीं सुना रहा है ।

आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।

है सामने लगा इक 
बरसों पुराना शीशा,
मैं हूँ अकेला तुझ बिन 
मुझको बता रहा है ।

आज बैठा हूँ फिर तुझे याद करने को ,
मज़ा आ रहा है ।
मद्धम सी मुस्कान का
छोटा सा बादल,
चेहरे पे च रहा है ।

-जितेश मेहता 

ज़िन्दगी क्या इक लहर ही तो है

ज़िन्दगी क्या इक लहर ही तो है 

ज़िन्दगी क्या इक लहर ही तो है,
आज उफान पर फिर अचानक ढलती,
कभी तेज़ कभी धीरे चलती,
कभी इक दलदल सी लगे धसा जा रहा हूँ,
किस अनचाहे चक्रवात में फसा जा रहा हूँ ,
कभी सहलाती ठंडी हवा सी,
बहलाती मन को किसी शान्त कर देने वाले 
गीत सी,
कभी दुश्मन कभी प्रीत सी,
कभी चील सी नोचती खरोंच मारती,
कभी इक माँ की मासूमियत सी निहारती,
कभी हौंसला बुलंद तेज़ धार में दौड़ती इक नाँव सा,
कभी इक बाढ़ में डूबता इक गाँव सा,
गहरा तनाव सा,
कभी इक रोशनी,
सुबह के पौ फटते ही दिखती,
कभी अँधेरा, भरी दोपहरी में भी चुबती,
कभी इक चुल्लू भर पानी सी छोटी,
कभी समंदर अथाह लम्बी चौड़ी मोटी,
कभी सिर्फ गहराता सा काला धुआं सा,
कभी प्यासे को मिला इक कुवाँ सा,
कभी भीड़ में अकेलेओपन को मरोड़ती,
कभी अकेलेपन में भीड़ से दूर दौड़ती,
ज़िन्दगी क्या इक लहर ही तो है,
आज उफान पर फिर अचानक ढलती,
कभी तेज़ कभी धीरे चलती

-जितेश मेहता 



बाकी सब ठीक है

बाकी सब ठीक है

धंदा है पूरा मंदा है
बाकी सब ठीक है
घर टूटा  है और गन्दा है
बाकी सब ठीक है
माँ बहु से रूठी है

बाकी सब ठीक है
नौकरी इक थी छूटी है

बाकी सब ठीक है
नजला जुखाम सब सर्द है 

बाकी सब ठीक है
सीने में रहता दर्द है

बाकी सब ठीक है
एक दोस्त है उधारी वाला 

बाकी सब ठीक है
वापस जब पैसा माँगा टाला

बाकी सब ठीक है
गाडी में रहती खराबी है

बाकी सब ठीक है
बापू पूरा शराबी है

बाकी सब ठीक है
पैसा अक्सर कम पड़ता है

बाकी सब ठीक है
भाई भाई से लड़ता है 

बाकी सब ठीक है
बारिश में पानी घर भरता है

बाकी सब ठीक है
नलका भी चूं चूं करता है

बाकी सब ठीक है
पंखा हिलता है गिरता है

बाकी सब ठीक है
फिर मुश्किल से ही फिरता है

बाकी सब ठीक है
महीने के अंत में तंगी है

बाकी सब ठीक है
बिजली की तारें नंगी हैं

बाकी सब ठीक है
ये बाकी की कहानी है

बाकी सब ठीक है
जीवन भर चलती जानी है

बाकी सब ठीक है

- जितेश मेहता

Monday, May 7, 2012

की इक आंधी है हम सब में

की इक आंधी है हम सब में

की इक आंधी है हम सब में
की हम सब नौजवान हैं |

ना कोई काम लगे मुश्किल
जहाँ चाहो लगा लें दिल,
ना जी पाते कभी तिल तिल ,
हैं बस रोनक ही भरते सब जगह
ऐसा अपना जहाँ है |


की इक आंधी है हम सब में
की हम सब नौजवान हैं |

ना सुनना वो बड़ी बातें
उनसे जो खुद ना कर पाते ,
जहाँ चाहें वहीँ जाते
किसी से हम ना घबराते ,
जो बस है फैलता जाए
हम इक ऐसा धुंवां हैं |


की इक आंधी है हम सब में
की हम सब नौजवान हैं |

बदलते रहते हैं हम
हर नियम को हर सदी में ,
घडी को हम बदल देते हैं
हर दूजी घडी में ,
लड़ी हैं हम से सब जुड़ते हैं
रहते इक लड़ी में,
हैं करते हम बहुत कुछ
जाने बिन जाना कहाँ है |


की इक आंधी है हम सब में
की हम सब नौजवान हैं |

नहीं हैं जानना कुछ भी
किसी से जो बड़े हैं ,
के है जिद करना जो हमको
करेंगे लग पड़े हैं ,
हिला ना पाया हमको
कोई भी जब हम अड़े हैं ,
ज़मीं थी पास अब तो हाथ
आना आसमान  है |


की इक आंधी है हम सब में
की हम सब नौजवान हैं |

- जितेश मेहता