Friday, February 15, 2013

मेरा पहला सच्चा प्यार

मेरा पहला सच्चा प्यार 

सुबह सुबह College की छत पर 
आकर था मैं धूप सेकता,
सब लोगों से पहले तुम आजाओगी 
बस येही देखता

वो रोज़ सुबह चढ़ने वाला 
बेमौसम तेज़ बुखार था, 
पर खूब मज़े का था जो भी 
मेरा पहला सच्चा प्यार था 

तेरे आते ही उस हवा में इक 
खुशबू का बादल आता था, 
मेरे मन में रग-रग और साँसों 
में वो घुलमिल सा जाता था 

वो बादल जब भी आता 
लाता इश्क की एक फुहार था,
पर खूब मज़े का था जो भी 
मेरा पहला सच्चा प्यार था 

जब पास कभी तुम आ जाती 
दिल तेज़ भागने लगता था, 
सब रुक जाता था उस पल 
मन में प्रेम जागने लगता था 

मैं दोस्त बंधू था भुला बैठा 
मेरा तू ही इक संसार था,
पर खूब मज़े का था जो भी 
मेरा पहला सच्चा प्यार था 

वो पल अब जब भी सोचता हूँ 
कहीं मंद-मंद मुस्काता हूँ,
तुमको पाया कैसे मैंने 
येही सोच के मैं इतराता हूँ 

हम दोनों का वो रिश्ता 
शायद रहना ही दिन-चार था, 
पर खूब मज़े का था जो भी 
मेरा पहला सच्चा प्यार था 

-जितेश मेहता 















Monday, February 11, 2013

चला चल चल


न तू घबरा ज़रा भी राह मुश्किल है
तो क्या ग़म है ,
अकेला है नहीं तू
साथ तेरे तेरा हमदम है ,
ये मुश्किल आती जाएँगी
नहीं रुकना है इक पल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल

कभी जो थक पड़े थोडा
कहीं रस्ते में आके,
ले डुबकी मार ठन्डे पाने में
निकल नहाके ,
चहकना सीखना होगा
नहीं है कोई और हल

चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल

कहीं अँधेरा आएगा 
जो सब सुनसान कर देगा, 
तेरी आखों तेरी बातों में 
बस मायूसी भर देगा ,
मगर काली अगर है रात आज 
सुहाना दिन कल 
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल

है तूने लिख दी अब 
अपनी कलम से अपनी किस्मत ,
के चाहे राह में जितने 
भी कांटे अब तू रुक मत ,
के अब हर दिन मचेगी
इस बदन में खूब हलचल 
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल

-जितेश मेहता 
 





Thursday, February 7, 2013

अपनी किश्ती घिरी है आज तूफानों में




अपनी किश्ती घिरी है
आज तूफानों में,
पर कमी आने देंगे
अपने अरमानों में

फ़रिश्ता तो बनना
शायद मुश्किल होगा,
पर नाम ज़रूर कर
जायेंगे इंसानों में

दीवाने भी देखने आयेंगे
इक दिन,
क्या बात है
हम पागल दीवानों में

महल के मज़े लेते है हम
रहते हुए,
अपने छोटे बड़े 
दिल से बनाये मकानों में

इस बार मौका मिला है
जियेंगे जी भरके कुछ करके,
शायद फिर मिले ये
कई ज़मानों में

अपनी जुबां के लोग तो
जानेगे ही,
पहचान होगी अपनी कई
ज़बानों में

बस काम कुछ ऐसे
करने हैं,
के लोग ढूंढे हमारी परछाई
हमारे क़दमों के निशानों में

कहानियां गड़ी जाएँगी
अक्सर हमारी,
पाए जायेंगे हम
छोटे बड़े अफसानों में

इक दिन अपनी भी दूकान
जमेगी और खूब चलेगी,
बीच कुछ
लम्बी चौड़ी दुकानों में

अपनी किश्ती घिरी है
आज तूफानों में,
पर कमी आने देंगे
अपने अरमानों में

-
जितेश मेहता