मेरा पहला सच्चा प्यार
सुबह सुबह College की छत पर
आकर था मैं धूप सेकता,
सब लोगों से पहले तुम आजाओगी
बस येही देखता
वो रोज़ सुबह चढ़ने वाला
बेमौसम तेज़ बुखार था,
पर खूब मज़े का था जो भी
मेरा पहला सच्चा प्यार था
तेरे आते ही उस हवा में इक
खुशबू का बादल आता था,
मेरे मन में रग-रग और साँसों
में वो घुलमिल सा जाता था
वो बादल जब भी आता
लाता इश्क की एक फुहार था,
पर खूब मज़े का था जो भी
मेरा पहला सच्चा प्यार था
जब पास कभी तुम आ जाती
दिल तेज़ भागने लगता था,
सब रुक जाता था उस पल
मन में प्रेम जागने लगता था
मैं दोस्त बंधू था भुला बैठा
मेरा तू ही इक संसार था,
पर खूब मज़े का था जो भी
मेरा पहला सच्चा प्यार था
वो पल अब जब भी सोचता हूँ
कहीं मंद-मंद मुस्काता हूँ,
तुमको पाया कैसे मैंने
येही सोच के मैं इतराता हूँ
हम दोनों का वो रिश्ता
शायद रहना ही दिन-चार था,
पर खूब मज़े का था जो भी
मेरा पहला सच्चा प्यार था
-जितेश मेहता