न तू घबरा ज़रा भी राह मुश्किल है
तो क्या ग़म है ,
अकेला है नहीं तू
साथ तेरे तेरा हमदम है ,
ये मुश्किल आती जाएँगी
नहीं रुकना है इक पल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
कभी जो थक पड़े थोडा
कहीं रस्ते में आके,
ले डुबकी मार ठन्डे पाने में
निकल नहाके ,
चहकना सीखना होगा
नहीं है कोई और हल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
कहीं अँधेरा आएगा
जो सब सुनसान कर देगा,
तेरी आखों तेरी बातों में
बस मायूसी भर देगा ,
मगर काली अगर है रात आज
सुहाना दिन कल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
है तूने लिख दी अब
अपनी कलम से अपनी किस्मत ,
के चाहे राह में जितने
भी कांटे अब तू रुक मत ,
के अब हर दिन मचेगी
इस बदन में खूब हलचल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
-जितेश मेहता
No comments:
Post a Comment