Tuesday, December 29, 2015

Mirror Image


मेरी चुलबुल बातें 
मुझसे ये अक्सर करता था, 

मेरे अकेले पन को 
मेरा दोस्त बन भरता था,

ख़ुशी में मुस्काता 
दुख में मेरे संग रोता था,

सच इससे नहीं छुपा 
वो दिखाता जो होता था, 

ये घिस गया थोडा सा है 
इन बीते सालों में,

और झुरियां उतनी ही 
पड़ गयी हैं मेरे गालों में,

कभी है चुप रहता 
कभी देख टकटकी लगाता है,

ये दर्पण हर पल 
मुझे मेरा प्रतिबिम्ब दिखाता है

दर्पण (Mirror)
प्रतिबिम्ब (Reflection) 

Monday, December 21, 2015

थोड़ी अईयाशी सी



ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी,
अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी

पहले शादी फिर बच्चे ख्च्चे  
चर्चे खर्चे बिजली पानी बीमा के पर्चे
फिर छाने लगती है धीरे से उदासी सी,

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी, 
अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी

पहले नौकरी फिर तरक्की  
ज़िमेदार्रियाँ वो भी पक्की,
दिनचर्या हो जाती है जैसे किसी खलासी सी,

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी, 
अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी

पहले घूमना फिरना त्यौहार रिश्तेदार अटखेलियाँ 
फिर सारी लगने लगती है पहेलियाँ,
माला भी लगती है फांसी सी,

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी, 
अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी



Friday, November 27, 2015

प्रकृति का विरोध

El Nino ने आके बारिश को रोक लिया
La Nina ने फ़ैल के सर्दी को टोक दिया
November ख़त्म हुआ, इक ठंडी हवा चली न
पंखे अब भी दिन रात चले हैं ,गर्मी अभी ढली न
सरद ऋतू पर सर्दी गायब ,बात बड़ी है चिंता की
अब सबको लगने लगा है, गलती है ये जनता की
कई सालों तक धुवां उड़ाया ,बिना सोचे कुछ भी अंजाम
हर साल बढ़ रहा तापमान,आगे लगेंगे हवा के दाम
अब भी कुछ कर पाये तो अच्च्छा, वर्ना चलो करें तैयारी
गर्मी में होगी सर्दी और सर्दी में गर्मी , अगली बारी 

Thursday, November 26, 2015

अत्याचार है

पूरे विश्व में त्राहिमाम-त्राहिमाम है
आम आदमी का हो रहा काम-तमाम है
दिन रात मचा हुआ हाहाकार है
आतंकियों का हो रहा अत्याचार है

कुछ देश इनमें अपने सब्ज़बाग को
भड़का रहे हैं इस सुलगती हुई आग को
मरते हुए बेगुनाह नज़र नहीं आते
आतंकियों से भरा हर समाचार है

अनपढ़ों की फ़ौज है हर क्षण बढ़ रही
जाने किस के लिए हर वक़्त है लड़ रही
आँख मूँद बैठे इनमे देश कई हैं
परमाणु के ढेर का इक अहंकार है

पूरे विश्व में त्राहिमाम त्राहिमाम है
आम आदमी का हो रहा काम तमाम है
दिन रात मचा हुआ हाहाकार है
आतंकियों का हो रहा अत्याचार है


Friday, November 20, 2015

आतंकवाद

सीधे-साधे बेगुनाह लोगों पर अत्याचार
चारों तरफ धुवाँ ,बम, गोलियों की फुंकार  

हर दिशा और हर दशा में गूंजे हाहाकार 
आदमी थे कभी जो, अब बन बैठे हैं खूंखार 

हथियारों की ताक़त का चिल्लाता अहँकार 
दुनिया के नक्शों को झट से बदलने का प्रहार 

कायर हैं कमज़ोर, न जाने करना जो संवाद 
निकल पड़े हैं, 'ज़ालिम' बनने, थामे आतंकवाद 

Tuesday, November 3, 2015

चार इतवार मज़ेदार


महीने के ये चार दिन हैं जो रिश्तों को सँभालते हैं 
बाकी के छब्बीस तो बस किश्तों को संभालते हैं 

इन चार दिनों में ही नाश्ते का असली मज़ा आता है 
बाकी दिन तो अक्सर वो जल्दबाज़ी में छूट जाता है 

सुबह देर से उठना बस इन दिनों को गवारा है 
बाकी दिन जल्दी उठना समझो इक फ़र्ज़ हमारा है 

इतवार ही है जब TV दोपहर भी चलता है 
बाकी दिन तो बस शाम के पहर ही चलता है 

इतवार ऐसा दिन है जो लाये खुशियों का अम्बार 
हर बार ऐसा मनता है जैसे आया हो त्यौहार 








Sunday, October 11, 2015

जो आज Rock Star है

जो आज Rock Star है
वो कल Rack Star होगा
किसी Rack पर पड़ा उसका पुरस्कार होगा

सिर्फ धुवाँ रह जाएगा
और दुआ ही बचेगी
आज शायद वो एक धुवाँदार होगा

तब ज़िद न रहेगी
मजबूरी ही रहेगी
बस कला दिखेगी ख़त्म कलाकार होगा

वो तालियों की गड़गड़ाहट
कानों में गूंजेगी
पर कान का इक पर्दा शायद बेकार होगा

आज सभी झुक रहे हैं
तारीफ में सम्मान में
तब शायद दिखावे का ही सत्कार होगा

जो आज Rock Star है
वो कल Rack Star होगा
किसी Rack पर पड़ा उसका पुरस्कार होगा 

Friday, September 4, 2015

वो देवदूत इक शिक्षक है

जीवन की राह का मार्गदर्शक
अच्छी आदतों का अधीक्षक है,

कई बच्चों की माँ, कई का पिता 
बचपन का जैसे रक्षक है,

जो मोड दे उभरती प्रतिभा को 
वो देवदूत इक शिक्षक है 

हर रोज़ इक पाठ पढ़ाता है
कई वर्षों से बिन रुके-थके,

ऐसी तरकीबें करता है
बेकार लगे आकर्षक है,

सुनता बच्चों की बक-बक जो
वो देवदूत इक शिक्षक है

आओ हम याद करें उनको
जो हमको समझ पाये थे

हर पल साथ देते जब भी
रस्ते में कंकर आये थे

वो ईश्वर का रूप ही है
पर कहलाता अध्यापक है

जिसने सपनों को पंख दिए
वो देवदूत इक शिक्षक है


dedicated to teachers across the globe 

Sunday, August 23, 2015

Global Warming

मुंबई में भी बारिश नहीं है global warming आई है
लोनावला की पहाड़ियों में केवल गर्मी छाई है

अहमदाबाद भी सूखा है बस चार दिन की बारिश थी
पूरे देश को तीन महीनों से पानी की ख्वाहिश थी

अब न बरसे तो तरसेंगे हम सब पूरा साल
किसान मरते जा रहें हैं बुरा बहुत है हाल

लगता है हम सब की करनी पर अब भरनी आई है
बादल सारे मुंह फुलाये करे पड़े रुसवाई हैं 

Tuesday, August 11, 2015

क्या बरखा आखिर बरसेगी ?

चिप-चिप करती सुबह शाम 
गर्मी-उमस से परेशान 
एक आस सी है हर साँस में 
क्या बरखा आखिर बरसेगी ?

आते बादल जाते बादल 
इक आशा सी बँधाते बादल 
आँखों में तैरती सी तलाश 
क्या बरखा आखिर बरसेगी ?

चलते AC और बढ़ते Bill 
उबलते दिमाग और बैठे दिल 
बस यही पुकारें हैं तिल-तिल 
क्या बरखा आखिर बरसेगी ?

पत्ते इक-इक कर सूख रहे 
पंछी अब कम ही दिखते हैं 
पानी के Pouch बिकते हैं 
क्या बरखा आखिर बरसेगी ?








Tuesday, July 28, 2015

जब झर-मर आई बूँदें

अब जाके मन को चैन मिला
जब झर-मर आई बूँदें 
सूर्य देव आराम कर रहे
अपनी आँखें मूंदे 

पानी से भरे गड्ढों को
अपना swimming pool बनाये 
नंगे-पूंगे बच्चे सारे 
मिटटी में आटा गूंधे 

अब जाके मन को चैन मिला
जब झर-मर आई बूँदें 

वर्षा सबसे सुन्दर ऋतू
सबके मन को भाए
पंछी, गाय, भैंस , मेंढक
इस मदिरा में झूम के कूदे 

अब जाके मन को चैन मिला
जब झर-मर आई बूँदें  

जल मग्न हो जाते
नदियां, तालाब,समंदर
हरियाली पेड़ों-पहाड़ों की
मन को खूब सुकूँ दे

अब जाके मन को चैन मिला
जब झर-मर आई बूँदें 
सूर्य देव आराम कर रहे
अपनी आँखें मूंदे 

Monday, July 27, 2015

गगन देव प्रसन्न हुए

गगन देव प्रसन्न हुए हैं 
आखिर बारिश आई
पेड़ नहा के खुश हुए
हर पत्ती भीग मुस्काई

Concrete की सड़कें हुई ठंडी
गर्मी से जो तप रहीं थीं
हर बूँद को सोख रहीं
अपनी बरसों की प्यास बुझाई

गगन देव प्रसन्न हुए हैं 
आखिर बारिश आई

'हरा' रंग दिखने लगा 
धूप से 'पीला' पड़ा था 
खिल उठी हर कली  
जो थकी मरी सी थी मुरझाई 

गगन देव प्रसन्न हुए हैं 
आखिर बारिश आई 

मेंढक टर-टर करके
झींगुरों का साथ दे रहे
चिड़ियाँ जो चुप बैठी थीं
फिर से है चेह्चहाईं

गगन देव प्रसन्न हुए हैं 
आखिर बारिश आई
पेड़ नहा के खुश हुए
हर पत्ती भीग मुस्काई




Saturday, July 11, 2015

बदलते मौसम का प्रभाव

कहीं पे वर्षा-हीन ऋतू का तनाव है
कहीं पे परेशानी क्योंकि जल-भराव है
शहरों के बीचों-बीच चलानी पड़ती नाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है

हमारी बनाई गगन-चुम्भी इमारतें
प्रकृति को नुक्सान पहुंचाती हरकतें
बेकार की वस्तुओं का फिर बढ़ता भाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है

अब ग्रीष्म ऋतू आके उबाल करती है
और सर्द ऋतू मौसम बेहाल करती है
वर्षा ऋतू का न आव है न ताव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है

जहाँ मिली ज़मीन वहीँ घर बन जाते हैं
लेह-लहाते खेत भी पत्थर बन जाते हैं
चारों तरफ दीवारों का ऐसा फैलाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है

Friday, July 10, 2015

इस वर्ष क्या नाराज़ हो

इस वर्ष क्या नाराज़ हो
वर्षा न करोगे ?
धरती के प्यासे कणों को
जल से न भरोगे ?

प्यासे हैं खड़े पेड़
पत्ते सूख रहे हैं
कब बरसोगे ऐ देव
यही पूछ रहे हैं

आँखें हुई पत्थर
लगाये तुम पे टक-टकी
उम्मीद है अब भी जगी
पलकें न झपकती

कुछ बूँदें तुम्हारी गिरे
सब खिल के उठेंगे
काले घने गीले बादल
जब गिर के छटेंगें

नदियाँ जो चुप सी बैठी हैं
कल-कल कर बहेंगीं
उदास अब जल मग्न तब
स्थिर स्थल न रहेंगीं

चिड़ियाँ जो थक गयीं हैं
फिर से चेह-चेहायेंगी
चीं-चीं चीं-चीं चीं-चीं कर
ज़ोर गीत गाएँगी

अब सूख काँटा हो रही
ये कायनात है
बरसो के पानी कम
न कुछ हमारे हाथ है

इस बार क्या गंगा बन
धरती पे न तरोगे ?
धरती के प्यासे कणों को
जल से न भरोगे ?

इस वर्ष क्या नाराज़ हो
वर्षा न करोगे ?
धरती के प्यासे कणों को
जल से न भरोगे ?

Wednesday, July 8, 2015

गगन है शायद मगन कहीं

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

ना जाने कब तुम बरसेगा
लगता है अब तुम बरसेगा
इक अलग थकान सी होती है
बिन जल आराम करने में

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

अब आओगे तड़पाओगे
या बिन बरसे ही जाओगे
कई लोग हैं बैठे लूट रहे
पानी का दाम करने में

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

किसान है आस लगाए हुए
खुद को गर्मी से भिगाये हुए
अब आ भी जाओ देर है कितनी
पानी से धारा को भरने में

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

Thursday, July 2, 2015

EL Nino

EL Nino बना EL कमीनो निकाल दिए EL पसीनो

Monsoon के मौसम में गर्मी चल रही EL महीनों 
गर्म धारा है हो रही evaporating EL ज़मीनो 
ठंडी कोई जगह नहीं जाने को EL कहिंनो
बरखा आओ बरस भी जाओ तरस रहें हैं EL यहिंनो 
गर्मी से बेहाल ज़िंदगी खुशहाल कहीं भी EL रहीनो  
ज़रा सी बारिश बस हुई  है बात अभी तक  EL जमीनो
गर्मी का प्रकोप बड़ा है अब तक गर्मी EL थमीनो

EL Nino बना EL कमीनो निकाल दिए EL पसीनो

Wednesday, June 24, 2015

बूँद-बूँद

बूँद-बूँद

बारिश में बरसे है प्यार बूँद-बूँद
मुस्कानों की लाए बौछार बूँद-बूँद
किसी के लिए सिर्फ़ मौसम इक मस्ताना
किसी के लिए है त्योहार बूँद-बूँद


सोई हसरतों को फिर जगाती बूँद-बूँद
थके हारों को भगाती बूँद-बूँद
पेड़ खुल के साँसें लेने लगें
सूखी धरती को जब भी भिगाती बूँद-बूँद


नीरस मन को तृप्त कर देती बूँद-बूँद
चेहरे को जब गीला तर देती बूँद-बूँद
सपनों पे जमी रेत धुलने लगे
आशाओं से जब जीवन को भर देती बूँद-बूँद

-जितेश मेहता 


Tuesday, June 2, 2015

जीवन -साथी

कैसे कटता जीवन जो न होता ये साथ तुम्हारा
उन कठिन पलों में साथ मेरे  मज़बूत ये हाथ तुम्हारा

तुम हो तो हर ग़म हर खुशी का अहसास अलग है
हर दिन हर रात कुछ नया कुछ ख़ास अलग है

तुम संग लड़ना, लड़ना नहीं प्यार जताने का तरीका है
तुम्हारे रूठने पर तुम्हें मानना , मज़ा फिर इसी का है

तुम्हारे लिए कुछ बनाना कुछ खरीदना मन को बहलाता है
ये नाता बड़ा अटूट है  'जीवन -साथी' कहलाता है

बस यूँही साथ रहें हम सदा इक यही गुज़ारिश है
इक और जनम भी साथ मिले दिल की ये ख्वाहिश है

Monday, February 23, 2015

Welcome Summer .......

Welcome Summer ....... 

गीला रुमाल, ठंडा जल, पेड़ की छाँव, अब यही चलेगा 
हर जीव, जंतु, मानव इस धुप में जलेगा 
गर्मी की ज्वाला से कैसे बचें ? बस यही रहेगी फिकर 
लो आ गया Summer

खाने को मन अब नहीं करेगा 
चाय की चुस्कियां बेकार लगेंगी 
गन्ने का रस,  आम रस,  बस करेगा असर 
लो आ गया Summer 

AC के बिन सोना मुश्किल,पढ़ना मुश्किल, लड़ना मुश्किल 
बिजली का बिल फिर Rs. 8000 का आएगा पर मन AC बिन चैन न पायेगा 
Drawing Room का नया AC पूरी करेगा कसर 
लो आ गया Summer  

थकान तो यूँ होगी कि हड्डियां चिल्लायेंगी 
नींद चिल्ला चिल्ला कर पुकारेगी, उबासियाँ धूम मचाएंगीं 
और थोड़ा काम करेंगे फिर भी टूटेगी कमर 
लो आ गया Summer 


Wednesday, January 7, 2015

Before the winter ends .....आओ धूप सेकते हैं


Before the winter ends.....

आओ धूप सेकते हैं 

बहुत दिन हुए कहीं बैठे हों दोनों बिना काम 
सुबह से दोपहर तक और फिर देर शाम 
आज चलो फिर पानी में ज़ोर पत्थर फैंकते हैं 
आओ धूप सेकते हैं 

अकेले अकेले तरक्की और ख्वाहिशों का दौर खूब चला 
अब मेरे साथ भी आके कुछ पल दो पल बिता तो भला 
आज चल एक साथ मिल कर इक सपना देखते हैं 
आओ धूप सेकते हैं 

इस दुनियादारी में अपनी यारी का रंग क्यों सूख चला 
वो भी दिन थे मैं तेरे घर और तू मेरे घर था पला  
आराम से बातें करें आज इक दूजे पर पीठ टेकते हैं 
आओ धूप सेकते हैं 

ये धूप नहीं है केवल ये मज़बूत कड़ी इस पल की है 
जो बीते साथ कई मौसम ये गर्माहट उस कल की है 
इस बार यार कोशिश करके आ पूरा इसे समेटते हैं 
आओ धूप सेकते हैं

जितेश मेहता