कहीं पे वर्षा-हीन ऋतू का तनाव है
कहीं पे परेशानी क्योंकि जल-भराव है
शहरों के बीचों-बीच चलानी पड़ती नाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है
हमारी बनाई गगन-चुम्भी इमारतें
प्रकृति को नुक्सान पहुंचाती हरकतें
बेकार की वस्तुओं का फिर बढ़ता भाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है
अब ग्रीष्म ऋतू आके उबाल करती है
और सर्द ऋतू मौसम बेहाल करती है
वर्षा ऋतू का न आव है न ताव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है
जहाँ मिली ज़मीन वहीँ घर बन जाते हैं
लेह-लहाते खेत भी पत्थर बन जाते हैं
चारों तरफ दीवारों का ऐसा फैलाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है
कहीं पे परेशानी क्योंकि जल-भराव है
शहरों के बीचों-बीच चलानी पड़ती नाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है
हमारी बनाई गगन-चुम्भी इमारतें
प्रकृति को नुक्सान पहुंचाती हरकतें
बेकार की वस्तुओं का फिर बढ़ता भाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है
और सर्द ऋतू मौसम बेहाल करती है
वर्षा ऋतू का न आव है न ताव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है
जहाँ मिली ज़मीन वहीँ घर बन जाते हैं
लेह-लहाते खेत भी पत्थर बन जाते हैं
चारों तरफ दीवारों का ऐसा फैलाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है
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