Tuesday, May 14, 2013

Dusky लड़की


आज मैं जिससे मिला
वो लड़की थोड़ी Dusky
आवाज़ दिल को छू गई
आवाज़ उसकी Husky थी

बाल थे जैसे काली रात के
बादलों का झुण्ड
उसकी ज़ुबान से गिरते
शब्द जैसे अमृत का कुंड

उसकी आँखें कंचे जिसमे
दुनिया पूरी समाई
और हिलती काली पुतली
जिसमे गंगा सी गहराई

उसके दांत संगेमरमर चमके
तारों से चम-चम
हर सांस में इतनी खुसबू
जीवन को महका दे हर दम

अब न जाने दिल उसको
क्यूँ भूल नहीं पाता है
अन्दर कुछ अजीब सा
होता है
बस ध्यान उसी तरफ जाता है

Monday, May 6, 2013

Life, Zindagi, Jeevan

ज़िन्दगी बड़ी रंगीन है
कभी मीठी कभी नमकीन है
कभी खुश कभी ग़मगीन है
कभी नीरस कभी शौक़ीन है

जीवन बड़ा कमाल है
कभी दुख  भरा कभी खुशहाल है
कभी स्थिर चले कभी बेहाल है
कभी मंद मंद चनचल कभी भूचाल है

Life बड़ी है funny है
कभी तो dark कभी ये sunny है
कभी फक्कड़ फिर full of money है
कभी tasteless कभी like honey है

-जितेश Mehta 

Wednesday, April 24, 2013

Over a cup of coffee

over a cup of coffee

कब से ढूंढ रहा हूँ मौका

माँगनी इक माफ़ी है 
पर ये शायद होना possible
over a cup of coffee है 

phone पे तुम जवाब न देती 

ये कैसी न इंसाफी है 
मिल के बात होना possible 
over a cup of coffee है 

तुझे खिलानी मैंने

अपने प्यार भरी इक toffee है 
वो भी लेकिन possible 
over a cup of coffee है 

इक बार ही मिल लो 

इक पल को वो मेरे लिए बस काफी है 
बाकी जो होगा होना वो 

over a cup of coffee है 



-Jitesh मेहता 




Saturday, April 13, 2013

नदी की व्यथा कथा

नदी की व्यथा कथा 


फैंको फैंको और ज़रा सा मैला गन्दा पानी
खूब सुनाना फिर दुनिया को मेरी मरी कहानी 

कब से तरस रही हूँ मैं इक साँस साफ़ ले पाऊं 
शहर बदले गावं भी बदले और कहाँ अब जाऊं 

मेरा मैला अंग देख क्यूँ रोती नहीं हैं आँखें 
मुझको पीके गन्दा करते तुम इंसान कहाँ के  

साबरमती के संत थे तब मेरी होती थी पूजा 
अब पूजा सामग्री डाल मुझको कर डाला दूजा 

विश्वामित्र ने बैठ किनारे मुझे था शुद्ध कर डाला 
तुमने आज बनाया उस विश्वामित्री को नाला 

अजी पे डाला कूड़ा कंकर मैली कर दी तापी 
रुक जाओ अब संभल भी आओ और बनो न पापी 

रुक जाओ अब संभल भी आओ और बनो न पापी 
रुक जाओ अब संभल भी आओ और बनो न पापी 

-जितेश मेहता 

Friday, February 15, 2013

मेरा पहला सच्चा प्यार

मेरा पहला सच्चा प्यार 

सुबह सुबह College की छत पर 
आकर था मैं धूप सेकता,
सब लोगों से पहले तुम आजाओगी 
बस येही देखता

वो रोज़ सुबह चढ़ने वाला 
बेमौसम तेज़ बुखार था, 
पर खूब मज़े का था जो भी 
मेरा पहला सच्चा प्यार था 

तेरे आते ही उस हवा में इक 
खुशबू का बादल आता था, 
मेरे मन में रग-रग और साँसों 
में वो घुलमिल सा जाता था 

वो बादल जब भी आता 
लाता इश्क की एक फुहार था,
पर खूब मज़े का था जो भी 
मेरा पहला सच्चा प्यार था 

जब पास कभी तुम आ जाती 
दिल तेज़ भागने लगता था, 
सब रुक जाता था उस पल 
मन में प्रेम जागने लगता था 

मैं दोस्त बंधू था भुला बैठा 
मेरा तू ही इक संसार था,
पर खूब मज़े का था जो भी 
मेरा पहला सच्चा प्यार था 

वो पल अब जब भी सोचता हूँ 
कहीं मंद-मंद मुस्काता हूँ,
तुमको पाया कैसे मैंने 
येही सोच के मैं इतराता हूँ 

हम दोनों का वो रिश्ता 
शायद रहना ही दिन-चार था, 
पर खूब मज़े का था जो भी 
मेरा पहला सच्चा प्यार था 

-जितेश मेहता 















Monday, February 11, 2013

चला चल चल


न तू घबरा ज़रा भी राह मुश्किल है
तो क्या ग़म है ,
अकेला है नहीं तू
साथ तेरे तेरा हमदम है ,
ये मुश्किल आती जाएँगी
नहीं रुकना है इक पल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल

कभी जो थक पड़े थोडा
कहीं रस्ते में आके,
ले डुबकी मार ठन्डे पाने में
निकल नहाके ,
चहकना सीखना होगा
नहीं है कोई और हल

चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल

कहीं अँधेरा आएगा 
जो सब सुनसान कर देगा, 
तेरी आखों तेरी बातों में 
बस मायूसी भर देगा ,
मगर काली अगर है रात आज 
सुहाना दिन कल 
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल

है तूने लिख दी अब 
अपनी कलम से अपनी किस्मत ,
के चाहे राह में जितने 
भी कांटे अब तू रुक मत ,
के अब हर दिन मचेगी
इस बदन में खूब हलचल 
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल
चला चल चल

-जितेश मेहता 
 





Thursday, February 7, 2013

अपनी किश्ती घिरी है आज तूफानों में




अपनी किश्ती घिरी है
आज तूफानों में,
पर कमी आने देंगे
अपने अरमानों में

फ़रिश्ता तो बनना
शायद मुश्किल होगा,
पर नाम ज़रूर कर
जायेंगे इंसानों में

दीवाने भी देखने आयेंगे
इक दिन,
क्या बात है
हम पागल दीवानों में

महल के मज़े लेते है हम
रहते हुए,
अपने छोटे बड़े 
दिल से बनाये मकानों में

इस बार मौका मिला है
जियेंगे जी भरके कुछ करके,
शायद फिर मिले ये
कई ज़मानों में

अपनी जुबां के लोग तो
जानेगे ही,
पहचान होगी अपनी कई
ज़बानों में

बस काम कुछ ऐसे
करने हैं,
के लोग ढूंढे हमारी परछाई
हमारे क़दमों के निशानों में

कहानियां गड़ी जाएँगी
अक्सर हमारी,
पाए जायेंगे हम
छोटे बड़े अफसानों में

इक दिन अपनी भी दूकान
जमेगी और खूब चलेगी,
बीच कुछ
लम्बी चौड़ी दुकानों में

अपनी किश्ती घिरी है
आज तूफानों में,
पर कमी आने देंगे
अपने अरमानों में

-
जितेश मेहता