Tuesday, July 28, 2015

जब झर-मर आई बूँदें

अब जाके मन को चैन मिला
जब झर-मर आई बूँदें 
सूर्य देव आराम कर रहे
अपनी आँखें मूंदे 

पानी से भरे गड्ढों को
अपना swimming pool बनाये 
नंगे-पूंगे बच्चे सारे 
मिटटी में आटा गूंधे 

अब जाके मन को चैन मिला
जब झर-मर आई बूँदें 

वर्षा सबसे सुन्दर ऋतू
सबके मन को भाए
पंछी, गाय, भैंस , मेंढक
इस मदिरा में झूम के कूदे 

अब जाके मन को चैन मिला
जब झर-मर आई बूँदें  

जल मग्न हो जाते
नदियां, तालाब,समंदर
हरियाली पेड़ों-पहाड़ों की
मन को खूब सुकूँ दे

अब जाके मन को चैन मिला
जब झर-मर आई बूँदें 
सूर्य देव आराम कर रहे
अपनी आँखें मूंदे 

Monday, July 27, 2015

गगन देव प्रसन्न हुए

गगन देव प्रसन्न हुए हैं 
आखिर बारिश आई
पेड़ नहा के खुश हुए
हर पत्ती भीग मुस्काई

Concrete की सड़कें हुई ठंडी
गर्मी से जो तप रहीं थीं
हर बूँद को सोख रहीं
अपनी बरसों की प्यास बुझाई

गगन देव प्रसन्न हुए हैं 
आखिर बारिश आई

'हरा' रंग दिखने लगा 
धूप से 'पीला' पड़ा था 
खिल उठी हर कली  
जो थकी मरी सी थी मुरझाई 

गगन देव प्रसन्न हुए हैं 
आखिर बारिश आई 

मेंढक टर-टर करके
झींगुरों का साथ दे रहे
चिड़ियाँ जो चुप बैठी थीं
फिर से है चेह्चहाईं

गगन देव प्रसन्न हुए हैं 
आखिर बारिश आई
पेड़ नहा के खुश हुए
हर पत्ती भीग मुस्काई




Saturday, July 11, 2015

बदलते मौसम का प्रभाव

कहीं पे वर्षा-हीन ऋतू का तनाव है
कहीं पे परेशानी क्योंकि जल-भराव है
शहरों के बीचों-बीच चलानी पड़ती नाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है

हमारी बनाई गगन-चुम्भी इमारतें
प्रकृति को नुक्सान पहुंचाती हरकतें
बेकार की वस्तुओं का फिर बढ़ता भाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है

अब ग्रीष्म ऋतू आके उबाल करती है
और सर्द ऋतू मौसम बेहाल करती है
वर्षा ऋतू का न आव है न ताव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है

जहाँ मिली ज़मीन वहीँ घर बन जाते हैं
लेह-लहाते खेत भी पत्थर बन जाते हैं
चारों तरफ दीवारों का ऐसा फैलाव है
अजीब विडंबना से गुज़र लोग रहे हैं
बदलते मौसम का ऐसा प्रभाव है

Friday, July 10, 2015

इस वर्ष क्या नाराज़ हो

इस वर्ष क्या नाराज़ हो
वर्षा न करोगे ?
धरती के प्यासे कणों को
जल से न भरोगे ?

प्यासे हैं खड़े पेड़
पत्ते सूख रहे हैं
कब बरसोगे ऐ देव
यही पूछ रहे हैं

आँखें हुई पत्थर
लगाये तुम पे टक-टकी
उम्मीद है अब भी जगी
पलकें न झपकती

कुछ बूँदें तुम्हारी गिरे
सब खिल के उठेंगे
काले घने गीले बादल
जब गिर के छटेंगें

नदियाँ जो चुप सी बैठी हैं
कल-कल कर बहेंगीं
उदास अब जल मग्न तब
स्थिर स्थल न रहेंगीं

चिड़ियाँ जो थक गयीं हैं
फिर से चेह-चेहायेंगी
चीं-चीं चीं-चीं चीं-चीं कर
ज़ोर गीत गाएँगी

अब सूख काँटा हो रही
ये कायनात है
बरसो के पानी कम
न कुछ हमारे हाथ है

इस बार क्या गंगा बन
धरती पे न तरोगे ?
धरती के प्यासे कणों को
जल से न भरोगे ?

इस वर्ष क्या नाराज़ हो
वर्षा न करोगे ?
धरती के प्यासे कणों को
जल से न भरोगे ?

Wednesday, July 8, 2015

गगन है शायद मगन कहीं

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

ना जाने कब तुम बरसेगा
लगता है अब तुम बरसेगा
इक अलग थकान सी होती है
बिन जल आराम करने में

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

अब आओगे तड़पाओगे
या बिन बरसे ही जाओगे
कई लोग हैं बैठे लूट रहे
पानी का दाम करने में

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

किसान है आस लगाए हुए
खुद को गर्मी से भिगाये हुए
अब आ भी जाओ देर है कितनी
पानी से धारा को भरने में

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

Thursday, July 2, 2015

EL Nino

EL Nino बना EL कमीनो निकाल दिए EL पसीनो

Monsoon के मौसम में गर्मी चल रही EL महीनों 
गर्म धारा है हो रही evaporating EL ज़मीनो 
ठंडी कोई जगह नहीं जाने को EL कहिंनो
बरखा आओ बरस भी जाओ तरस रहें हैं EL यहिंनो 
गर्मी से बेहाल ज़िंदगी खुशहाल कहीं भी EL रहीनो  
ज़रा सी बारिश बस हुई  है बात अभी तक  EL जमीनो
गर्मी का प्रकोप बड़ा है अब तक गर्मी EL थमीनो

EL Nino बना EL कमीनो निकाल दिए EL पसीनो