Wednesday, July 8, 2015

गगन है शायद मगन कहीं

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

ना जाने कब तुम बरसेगा
लगता है अब तुम बरसेगा
इक अलग थकान सी होती है
बिन जल आराम करने में

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

अब आओगे तड़पाओगे
या बिन बरसे ही जाओगे
कई लोग हैं बैठे लूट रहे
पानी का दाम करने में

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

किसान है आस लगाए हुए
खुद को गर्मी से भिगाये हुए
अब आ भी जाओ देर है कितनी
पानी से धारा को भरने में

गगन हो शायद मगन कहीं
कुछ और काम करने में
हम बैठे-बैठे तरस रहे
सुबह से शाम करने में

No comments:

Post a Comment