Friday, July 10, 2015

इस वर्ष क्या नाराज़ हो

इस वर्ष क्या नाराज़ हो
वर्षा न करोगे ?
धरती के प्यासे कणों को
जल से न भरोगे ?

प्यासे हैं खड़े पेड़
पत्ते सूख रहे हैं
कब बरसोगे ऐ देव
यही पूछ रहे हैं

आँखें हुई पत्थर
लगाये तुम पे टक-टकी
उम्मीद है अब भी जगी
पलकें न झपकती

कुछ बूँदें तुम्हारी गिरे
सब खिल के उठेंगे
काले घने गीले बादल
जब गिर के छटेंगें

नदियाँ जो चुप सी बैठी हैं
कल-कल कर बहेंगीं
उदास अब जल मग्न तब
स्थिर स्थल न रहेंगीं

चिड़ियाँ जो थक गयीं हैं
फिर से चेह-चेहायेंगी
चीं-चीं चीं-चीं चीं-चीं कर
ज़ोर गीत गाएँगी

अब सूख काँटा हो रही
ये कायनात है
बरसो के पानी कम
न कुछ हमारे हाथ है

इस बार क्या गंगा बन
धरती पे न तरोगे ?
धरती के प्यासे कणों को
जल से न भरोगे ?

इस वर्ष क्या नाराज़ हो
वर्षा न करोगे ?
धरती के प्यासे कणों को
जल से न भरोगे ?

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