Saturday, April 29, 2017

ख़यालों की बस्ती में

ख़यालों की बस्ती में
अपनी एक दुकान है 
जिसमें गहने बिकते हैं 
ग्राहक अक्सर दिखते हैं 
नोटों का गोदाम है 

ख़यालों की बस्ती में

ख़यालों की बस्ती में 
अपना बड़ा सा बंगला है 
बाकी मोहल्ला कंगला है 
दरबार हूँ रोज़ लगाता 
ऐसी अपनी शान है 

ख़यालों की बस्ती में

ख़यालों की बस्ती में 
तीन रानियाँ संग में है 
सेना बाकी जंग में है 
जीवन रंगा-रंग में है 
इक सोने की खान है 

ख़यालों की बस्ती में

ख़यालों की बस्ती में 
बनें संत महान हैं 
बाटें हरदम ज्ञान हैं 
काम किए कुछ ऐसे 
मिलने को तरसे इंसान हैं 

ख़यालों की बस्ती में

-जितेश मेहता 

Tuesday, April 18, 2017

तलाक



Inspired by the lines of a famous Poet, please read my version of Talaak

तलाक

तलाक तो दे रहे हो मुझे गुरुर और  कहर  के साथ
मेरी जवानी भी लौटा दो मेरी मेहर के साथ

दिन लिए, महीने लिए, साल लिए
मेरी शाम भी वापस दे दो मेरी सहर के साथ

अब तिल तिल के जीने से क्या फायदा
साँसे मेरी लौटा दो एक बोतल ज़हर के साथ

तुम्हारा प्यार था मेरे जीवन की बारिश
अब खत्म हो गयीं सारी ख्वाहिश
अब ले गए हो अपनेपन की धुप
मोहब्बत की दोपहर के साथ

तुम्हारे कहते ही कि मैं तुम संग जी न सकूँगा
अब साथ चलोगी तो और थकुंगा
मेरे सपने बह गए जैसे कहीं
बदनसीबी की नेहर के साथ

तलाक तो दे रहे हो मुझे गुरुर और कहर के साथ

मेरा जवानी भी लौटा दो मेरी मेहर के साथ

-जितेश मेहता