Tuesday, November 3, 2015

चार इतवार मज़ेदार


महीने के ये चार दिन हैं जो रिश्तों को सँभालते हैं 
बाकी के छब्बीस तो बस किश्तों को संभालते हैं 

इन चार दिनों में ही नाश्ते का असली मज़ा आता है 
बाकी दिन तो अक्सर वो जल्दबाज़ी में छूट जाता है 

सुबह देर से उठना बस इन दिनों को गवारा है 
बाकी दिन जल्दी उठना समझो इक फ़र्ज़ हमारा है 

इतवार ही है जब TV दोपहर भी चलता है 
बाकी दिन तो बस शाम के पहर ही चलता है 

इतवार ऐसा दिन है जो लाये खुशियों का अम्बार 
हर बार ऐसा मनता है जैसे आया हो त्यौहार 








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