महीने के ये चार दिन हैं जो रिश्तों को सँभालते हैं
बाकी के छब्बीस तो बस किश्तों को संभालते हैं
इन चार दिनों में ही नाश्ते का असली मज़ा आता है
बाकी दिन तो अक्सर वो जल्दबाज़ी में छूट जाता है
सुबह देर से उठना बस इन दिनों को गवारा है
बाकी दिन जल्दी उठना समझो इक फ़र्ज़ हमारा है
इतवार ही है जब TV दोपहर भी चलता है
बाकी दिन तो बस शाम के पहर ही चलता है
इतवार ऐसा दिन है जो लाये खुशियों का अम्बार
हर बार ऐसा मनता है जैसे आया हो त्यौहार
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