Sunday, August 7, 2011

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी

this poem takes you through the various stages of life of a common man
and tells that each one of us need to take out time for some fun in life. fun here is termed as "अईयाशी"



ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी,

अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी,


पहले शादी फिर बच्चे ख्च्चे

चर्चे खर्चे बिजली पानी बीमा के पर्चे

फिर छाने लगती है धीरे से उदासी सी,

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी,

अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी,



पहले नौकरी फिर तराकी

ज़िमेदार्रियाँ वो भी पक्की,

दिनचर्या हो जाती है जैसे किसी खलासी सी,

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी,

अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी,



पहले घूमना फिरना त्यौहार रिश्तेदार अटखेलियाँ

फिर सारी लगने लगती है पहेलियाँ,

माला भी लगती है फंसी सी,

ज़िन्दगी रह जाती है प्यासी सी,

अगर ना रहे थोड़ी अईयाशी सी,



-जितेश मेहता

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