Monday, July 24, 2017

गीला है

आज तो मेघा ऐसे बरसे
हर इक स्थान गीला है
धरती तो गीली होनी थी
आसमान भी गीला है
बाहर जितना भी पड़ा
सारा सामान भी गीला है
इंसान तो गीले हैं ही
'भगवान' भी गीला है
अच्छा भी गीला है
और शैतान भी गीला है
इज़्ज़तदार भी गीला है
और बदजुबान भी गीला है
पांडे गीला, Joseph गीला,
सिंह और ख़ान भी गीला है
धूप से सूख जो मुरझाया था
हर अरमान गीला है
रौनक वाला गीला है
रस्ता 'सुन-सान' गीला है
शातिर भी गीला है
बेचारा नादान भी गीला है
जिनकी ईंटें सूख चुकी थी
हर वो मकान गीला है
आज तो मेघा ऐसे बरसे
हर इक स्थान गीला है ...

-वर्षा ऋतु की शुभकामनाएं 
  जितेश मेहता 

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